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Madhya Pradesh ke jilo me corona ki esthiti
बिआह केर पुरान मजा - वर्ष1990 के पहले के भी क्या दिन थे ! अगहन लगते ही शदीहा (कजहा) आने लगते थे । कोई मिर्जापुर से, कोई सीधी से कोई रीवा से कोई कटनी से और कोई गोरा बजवाही से और कोई त्योंधरी से । कोई अकेले और कोई 2 के साथ मे । उनकी खूब खातिरदारी होती । वे कई दिन टिकते ।उनके लिए अलग मस्त बिस्तर बिछाया जाता ।दोपहर नहाने से पहले नाऊ द्वारा उनकी तेल मालिश की जाती । जिस -जिस के यहां ' लड़का ' होता, अबाह में दूसरों के बैल , गाय , भैंस मांग कर बांध लेते । लड़के के हाथ में घड़ी बांध देते । उसे 5वीं पास होने की बात बता देते । कजहा के पास लड़का आता । वे देखते। अबाह देखते और खेत - खलिहान देखते ,शादी पक्की हो जाती । वरीक्षा दे दिया जाता । फिर तिलक लेकर कोई एक प्रमुख के साथ नाऊ पंडित आते । तिलक में कोपरथार, सुपरफैन कपड़ा, नारियल, सुपाड़ी, हल्दी ,कुछ रुपये और लगन लिखने के लिए कागज आदि होते । पंडित लगन लिखते । लग्नानुसार विवाह के मुख्य कार्यक्रम जैसे माटीमागर, मंडपाच्छादन और मंत्री पूजा होती । घर-परिवार, रिश्तेदारों को ' सुपाड़ी ' दे कर हाथ जोड़कर कर न्योता दिया जा ।बहन बेटियों को बुलाया जाता । द्वारचार के एक दिन पहले शाम 4 बजे बारात गंतव्य की ओर चलती । सब बाराती बनयान परदनी में होते।कुर्ता कंधे पर टांग लेते । दूल्हा जामाजोड़ा पहनता । उसे ऊंची मौर पहनाई जाती।उसे कटार दे दी जाती। अम्मा काजल आंजती । महिलाएं मंगल गीत गातीं--ं अम्मा चला हमारे साथ अकेले हम ना जाबय हो । लाला बाबू क लइ ल्या साथ बराते ओइन जइहयं हो कई बैलगाड़ियों में बराती चलते । कुछ लोग पैदल चलते । डफुला वाले आगे - आगे चलते । अगले दिन दोपहर बारात दुर्जनपुर पहुंचती । यहां बाराती पूड़ी - सब्जी खाते और फिर चल कर 6 बजे गंतव्य गांव पहुंचते और किसी बगीचे को जनवास बनाते । घरात का नाऊ छाता ले कर जनवास जाता । बाराती जल्दी - जल्दी कपड़ा पहनते , डाबर आंवला का तेल लगाते और द्वारचार हेतु कन्या के द्वार पहुंचते । एक तरफ पड़ाका फूटता तो दूसरी ओर दुलदुल घोड़ी नाचती। घराती महिलाएं बरातियों की ओर बतासा - लावा मारतीं और गातीं -- कहना केर बराती रे सब करिऐ करिया। कहना केर घराती रे सब गोरिऐ गोरिया। पश्चात बारात जनवास पहुंचती और दूल्हे को लहकौर भेजा जाता । सभी बच्चे दूल्हे और बलहे के साथ लहकौर खा कर सो जाते । दूल्हे को आंगन में मंडप के नीचे बैठाकर विवाह की विधिवत प्रक्रियाएं पूरी की जातीं। बारातियों की भोज - पंगत बैठती और फूफा रिसाता। मान मनौवल होती । 10-25 रु0 में वह मान जाता । तेंदू के पत्तल -दोने हर बराती के सामने रख कर रोटी , चावल,कढ़ी,इन्दरहर, मुगौड़ा, अचार आदि परोसा जाता और कोई आता और परी -परी भर घी सब के दाल में डाल जाता । और लेने के लिए निवेदन किया जाता। बराती ना - ना करते । अन्दर से ढोलक की थाप पर गारी गाई जाती-- उतरत माघ लगत दिन फागुन किस्न चले ससुरारी कि हां जिउ ------।......। बाद में-- मेछा वाले मीत बोलते काहे नहीं । अरे डाढ़ी वाले मीत बोलते काहे नहीं। अरे टोपी वाले मीत बोलते काहे नहीं।.... अगले दिन बसी होती । खाना जनवास में ही बनता।सायं 'दैजा' का प्रेम पूर्वक कार्यक्रम होता । कुछ सयाने लोग एक - दूसरे का परिचय देते और राम- विवाह की पौराणिकता बताते । भांट कविताएं सुनाते। तीसरे दिन बिदाई होती । कन्या विलाप करती। पिता जी माता जी भाई बंधु सब विलाप करते। कुछ पठौनी बैलगाड़ियों में रखी जाती । इधर बसी के दिन वर पक्ष के घर में रात भर बहलोल होता । बरात घर पहुंचती । परछन और कथा होती । वधू गृह प्रवेश करती । फिर शुरू होता 100 वर्षों का सफल वैवाहिक जीवन !
महिलाओं को सरकार देगी 1000 रुपये प्रति माह, जानें लाडली बहना योजना का किसे और कैसे मिलेगा लाभ यदि समाज सशक्त है तो राज्य सशक्त है और राज्य सशक्तीकरण का मतलब देश का सशक्तिकरण है. आधी आबादी (महिलाओं) के सशक्तीकरण के बिना देश सशक्त नहीं हो सकता है. जानें सीएम शिवराज चौहान ने क्या कहा